जिज्ञासा के पार का वो गांव
जहाँ रहते हैं न्यूटन,
और फ़्रायड महानुभाव।
जहाँ आज भी हिलते दोलन कि गति,
माप रहें गैलिलिन भाऊ।
वहाँ मैरी क्यूरी सपने देखें,
कागज़-कलम उठाने के।
और उन्हें ये दुनिया रोके,
लिंग बताकर पढ़ने से।
ज्ञान यज्ञ में प्राण न्योछावर,
मरीं रोग रेडिएशन के।
जीवन भर संघर्ष किया,
और प्राण दिए पॉलोनियम के।
नारी को अधिकार दिलाया,
शिक्षा का और समता का।
दुनिया में स्थान बनाया,
प्रश्नों का और उत्तर का।
हर युग की पहचान यही है,
ज्ञान की पूरी शाख यही है,
खोजी हो तो खुद मिट जाए,
प्रश्नों को हथियार बनाए।
“क्यों” का सफर अधूरा जानो
“कैसे” पर यदि अंत न हो।
ज्ञान कलम की स्याही जब तक
बिखर धरा पर रंग न हो।
तथ्यों का ये सफर जिसे
विज्ञान आज हम कहते हैं
तथ्य-सत्य के प्रति निश्चयी
लोगों की बलि गाथा है।
बात नहीं बस लेबोरेट्री की
जीव लैब मन साँचा है।
खेल नहीं ये प्रश्नों का बस,
उत्तर की अभिलाषा है।
~ अनजान कलम।
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